Saturday, July 24, 2010

कल के सूरज


बिना चाँद की रात में
चमकती उस की मुस्कान है
सपने बुनती बैठी उस के गोद में
बच्चे का खिलता बचपन है

कहानी सुनाकर लोरी गा रही है
बच्चा तो बहाना है, खुद को सुनाती लोरी है
पेड़ों के झुण्ड से उठी ठंडी हवा
झोकें से बदन को छुआ है
पलकों में जमी नींद भी


झोंकें के संग चल बसी है
"माँ" कहतेहुए बच्चा दूध भरे सीने के और बढ़ा 
हैअपने नुर्म स्पर्श से नाभि के गहराई में
 चाहत कि चिंगारी भड़काया है
मगर उसे बुझानेवाले ने भटक भटक के घर को भूला है


जीवन के अँधेरी झोपड़ी मेंरोशनी घुसने के लिए छल्ले भी नहीं है
फिर भी वह औरत जीती है, रोशनी के इंतज़ार में
सीना चूसकर सपने जगानेवाले बच्चे के लिए
रोशनी लानेवाले "कल के सूरज" के उदय के लिए