सुबह सुबह श्रीधर को बहुत गुस्सा आया था । बिस्तर में आँखें खुलने में ही देरी हो जाने की वजह से से गुस्सा और बढ़ रहा था। साथ ही साथ तीसरी बिटिया रात भर हुई उलटी और दस्त से बीमार पडी थी। बीवी ने किचन से चिड चिड करतेहुए आवाज़ लगाया कि.. '' उसे अस्पताल लेजाओ..'' ।
इस ने भी तीखे आवाज़ में ही जवाब दिया कि.. '' मै नहीं लेजाऊंगा''..।
साथ में ये भी कहा कि ''रिश्तेदारों की शादी में बेवजह जाकर ठूस ठूस के खाना खाओगे.. तो बीमारी नही तो और क्या होगा...'' ।
''वो तुम्हारी रिश्तेदारों कि शादी थी, मै ने बच्चों को साथ लेकर शादी में जाकर तुम्हारी इज्जत बचाई है । और तुम मुझ पर ही..चिल्ला रहे हो.. ? आज के बाद तुम्हारी तरफ के किसी भी शादी में मै नहीं जाउंगी..देख लेना'' कहर सुपर्णा ने श्रीधर को जोर से ही जवाब दिया ।
'' कुछ भी कर लो... भाड में जाओ, डूब मरो तुम सब'' श्रीदर भी तानेबाजी में पीछे नहीं हटा ।
सुपर्णा इस को नाश्ता भी नहीं देतेहुए खुद अपनी बेटी को घसीटकर अस्पताल ले चली गयी ।
''वो तुम्हारी रिश्तेदारों कि शादी थी, मै ने बच्चों को साथ लेकर शादी में जाकर तुम्हारी इज्जत बचाई है । और तुम मुझ पर ही..चिल्ला रहे हो.. ? आज के बाद तुम्हारी तरफ के किसी भी शादी में मै नहीं जाउंगी..देख लेना'' कहर सुपर्णा ने श्रीधर को जोर से ही जवाब दिया ।
'' कुछ भी कर लो... भाड में जाओ, डूब मरो तुम सब'' श्रीदर भी तानेबाजी में पीछे नहीं हटा ।
सुपर्णा इस को नाश्ता भी नहीं देतेहुए खुद अपनी बेटी को घसीटकर अस्पताल ले चली गयी ।
उस सुबह श्रीधर को गुस्सा आने के पीछे एक और वजह भी थी । वो यह कि, पिछले दिन शाम को ऑफिस से निकलने में पाँच मिनट की देरी हुयी थी । इतने में कम्पनी की व्यान का ड्राइवर ने इन्तजार नहीं करतेहुए इस के आने से पहले ही निकल चुका था । बाद में ऑटोरिक्शा नहीं मिलने से हैरान होकर, बेहाली से हाँकतहुए घर पोहुंचने में रात के दस बज चुके थें । जब ये घर पोहुंचा, तो सुपर्णा किसी की शादी से लौटकर अपनी रेशम की साडी को अलामारे में रखते नज़र आयी थी ।
कुछ भी हो.. ऐसे छोटे छोटे चीजों पर दिमाग की दही नही बनानी चाहिए..ऐसा सोचातेहुए श्रीधर ने अपना नहाना ख़तम कर के पूजा करने बैठा । मगर मन में ख़यालबाजी चल रही थी । ''व्यान का ड्राइवर इकबाल को छोडूंगा नही आज, उसे वजह बतानी होगी कि, उस ने मुझे कल ऑफिस में ही छोड़कर क्यों चलागया ।
मै भी देखूंगा कि, क्या वो किसी के लिए भी इंतज़ार नही करेगा..? अगर किसी
के वजह से एक मिनट भी रुका, तो मैं ''ये क्या हो रहा है ? क्यों भेदभाव
कर रहे हो ..? '' कहकर उसे अपमानित करूँगा'' । ऐसे मन ही मन फैसले करतहुए ही पूजा की विधि को जल्दबाजी में ख़तम किया । पूजा के बाद में भी उस का मन सिर्फ इकबाल से लड़ रहा था ।
बिना नाश्ता किये ही ऑफिस के लिए निकला तो, दरवाजा बंद करने के लिए चाबी नहीं मिल रही थी । जिस जगह पर उस को होनी चाहिए, वहाँ वो नही थी । अनुमान लगाया कि, चाबी को सुपर्णा ले गयी होगी । उसी से पूछने के लिए फ़ोन मिलाया तो, उस ने फ़ोन ही नहीं उठाया । श्रीधर का गुस्सा बढ़ रहा था । अब फिर से देर हुई तो, आज भी इकबाल व्यान लेकर निकल जाएगा । ऑफिस पोहुचने में जरूर देर हो जायेगी । यहाँ से भी ऑटोरिक्शा नहीं मिलेंगे ।
फिर उस ने एक दूसरे ताले से दरवाजे को बंद कर के चाबी को पड़ोस के घर
में देने का फैसला करतेहुए बहार आया तो, चाबी वही दरवाजे पर ही लटकतीहुई नज़र आई । रात को इसी ने देरी से आकर दरवाजा खोलने के बाद चाबी को वही पर छोड़ा था ।
रोड पर आकर खडा हुआ, मगर पंद्रह मिनट बीतजानेपर भी इकबाल का व्यान नही आया । फिर से गुस्से में बेचैन होते हुए, इकबाल को डाँटने के तरीकों को सोचतेहुए फुटपाथ पर मंडरानेलगा । गुस्से की वजह से एक एक पल भी एक एक घंटे की तरह लगनेलागे थे । जब इकबाल व्यान लेकर आया तो, श्रीधर का गुस्सा सर चढ़कर कांपते हुए खडा था ।
माधवी कुलकर्णी व्यान के सामनेवाली सीट पर बैठी थी, जिस पर श्रीधर हमेशा बैठता था । पीछे जाकर बैठने से पहले इकबाल को दो चार गाली गलोच देने का मन बनाया, मगर उस की हिम्मत ने उस का साथ नही दिया । व्यान में एफ़-एम् रेडियो गूँज रहा था । उस शोर में ही श्रीधर जोर से चिल्लाके कुछ कहा, मगर उस पर किसी का ध्यान नही गया । सामने बैठाहुवा एक पहचान के चहरे ने आँखों से ही इशारे में कहा कि ..''पीछे की सीट खाली है''। श्रीधर अभी भी इस बात का फैसला नहीं किएहुए खडा था कि, पीछे जाकर बैठ जाऊं.? या पहले इकबाल को डांट लूं । इतने में ही ड्राइवर ने गाड़ी की ब्रेक अचानक दबा दी । उस ब्रेक के झटके से श्रीधर माधवी कुलकर्णी के ऊपर मूह के बल गिर पड़ा । इस का सर जाकर माधवी के कंधे पर लगने से उस की साडी का पल्लू कस के लगायी हुई सेफ्टी पिन के साथ उखडगयी । माधवी अपनी मराठी भाषा में श्रीधर की इज्ज़त उतारने लगी । इतने में चपटी नाकवाली मानवी ने छोटे बच्चों को मनानेवाली माँ जैसी अंदाज़ में '' क्या हुवा..? अरे पीछे जाकर बैठ जाओ ना'' कहा । । श्रीधर ने जवाब दिया कि, ''पता है, पता है ... बैठ जाऊँगा'' । मानवी फिर से ''अरे.. इतनी सी बात पे भड़कते हो आप '' कहा । श्रीधर को उन दोनों औरतों को जान से मारने का मन कर रहा था । उस को पहले कभी इतना गुस्सा नही आया था । उस को यह भी पता नहीं था कि, मनानेवाली बातों में भी इतनी अपमानित करने की ताकत होती है । ऐसा लगने लगा कि व्यान में सब लोग उसी को देख रहें हैं । ऐसा भी ख़याल आया कि, ''मै सब के लिए मै outdated लगने लगा हूँ'' ।
रोज कुछ न कुछ बात करनेवाला गुजराती नरेश पटेल अपने सीट में बैठकर अखबार पढ़ने में व्यस्त नज़र आया । अपनी मुस्कान से ही दिल बेहलानेवाली निशा भी आज खिड़की के बहार ताकती हुई बैठी थी । ऐसा लगने लगा कि इन सब के साथ मै नही हूँ । उन के लिए मेरा अस्तित्व कोई माईना नही रखता । इतने में श्रीधर को अचानक याद आया कि इन सब घटनाओं का वजह ये घटिया ड्राइवर ''इकबाल'' ही है । जान बूचकर ही उस ने व्यान में इतने जोर से रेडियो लगाया है । वही ये सब करवा रहा है, क्यों कि उस को पता है कि मै उस कोआज डाँटने वाला हूँ । श्रीधर को समझ में आगया कि माधवी को जान बूचकर इकबाल ने ही सामनेवाली सीट पर बिठाया है ।
ऑफिस पोंहुचने तक श्रीधर के सीने में जलन शुरू हो चुकी थी । सोचा कि, सुबह की नाश्ता नही करने के वजह से आसिडिटी से शुरू हुई होगी । जल्द ही कैंटीन जाने का फैसला कर के अपने वर्कस्टेशन पर बैठकर कंप्यूटर को चालु करते ही इ-मेल से तुरंत मीटिंग रूम में आने की सूचना मिली । कान्फरेन्स हाँल में इस के जाने से पहले ही सब लोग हाजिर थे । अमेरिका के ऊपरी दफ्तर से उन की कम्पनी के दिवाला निकलने की आशंका के साथ साथ कुछ कर्मचारियों को घर भेजने की सूचना भी मिली थी
। बॉस बता रहा था कि, बंगलोर की इस शाखा में भी पहले चरण में दो सौ लोगों को पिंक स्लिप देकर घर भेजदिया जाएगा
। मीटिंग से वापस आते ही कैंटीन जाकर वहा दो इडली और साम्बार खाने की कोशिश किया
। उसे खाते ही सर में दर्द शुरू होगई, बेचैनी सी लगने लगा और जो कुछ खाया था, सब उलटी हो गयी । वमन के बाद एक के बाद एक सिगरेट फूँक कर वापस आया
। कंप्यूटर पर बैठकर देखा तो, उस की अमेरिकावाले बेटे की इ-मेल इंतज़ार कर रही थी । इ-मेल से पता चला कि बेटे की अमेरिकावाली नौकरी चल बसी है
। घर को फ़ोन कर बीवी को इस बात को बताने का भी मन नहीं हुवा
।
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दोपहर के खाने के बाद विराम में श्रीधर अपने पर्सनल इनबाक्स में पड़े अनचाहे इ-मेलों को डिलीट कर रहा था । उन के बीच एक पुरानी फारवर्ड किया हुवा मेल पर नज़र रुकी । उस में एक लेख के साथ ताजमहल के और कुछ मंदिरों के फोटो भी जोड़ेहुए थे ।
उस लेख में लिखा गया था कि, किस तरह एक हिन्दू राजा की अपनी खुद के निवास
के लिए बंधवाई हुई महल को शाहजहान ने अपने कब्जे में लिया और उस को
मुमताज़ बेगम की समाधि के रूप में तब्दील किया ।
उस बात की पुष्टि के लिए कुछ चारित्रिक आधार और ताजमहल की वास्तु की अलग
अलग तस्वीर और साथ में कुछ मंदिरों के भी तस्वीर और विवरण थें,
जिन जिन मंदिरों को मुसलमान राजाओं ने मस्जिद के रूप में बदल डाला । लेख के अंत में कुछ वेबसाइट्स के लिंक मौजूद थे, जिन में इस बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध थी । कई सारे इतिहास के पुस्तकों का नामों का उल्लेख था जिन में मुसलामानों से भारत पर हुई अत्याचारों का ब्यौरा लिखा हुआ है । ये सब पढने के बाद श्रीधर को व्यान का ड्राइवर इकबाल इन सब मुसलामानों की प्रतिनिधी के रूप में नज़र आने लगा । ''आज शाम को मिलने दो..सही सबक सिखाऊंगा उसे'' ऐसा सोचातेहुए अपने काम में लग गया । मगर दिमाग में सिर्फ इकबाल का चेहरा सता रहा था । कई बार ऐसे धुन्दले चित्र आँखों के सामने आने लगे, जिन में इकबाल और उस के साथी एक हिन्दू मंदिर को तोड़ रहे थे ।
घर जाने का वक्त होने में कुछ देर बाक़ी था । इतने में श्रीधर सोच रहा था कि, अपने विभाग से किस किस को नौकरी से हटाकर घर का रास्ता दिखाया जाए । अचानक मन में आई एक ख़याल से उस का मन खिला उठा । अगर दो सौ लोगों को नौकरी से निकालना है तो, उन के साथ में कम से कम बीस व्यान ड्राइवरों को भी अपने नौकरी से हाथ दोना पड़ेगा । उन बीस लोगों की सूची में इस हराम इकबाल का नाम जरूर अना चाहिए । यही सही वक्त है इस को सबक सिखाने का । मै इस मौके को नहीं छोडूंगा । इस वक्त शिकायत किया तो, तुरंत निकाल फेकेंगे उस को । ऐसे ख़याल आते ही श्रीधर उत्साहित होकर सट के बैठा और इ-मेल में इकबाल पर शिकायत लिखकर भेज डाला । शिकायत भेजने के बाद ही उस के मन को थोड़ी सी चैन मिली ।
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शाम को व्यान में चढ़ते हुए श्रीधर के चहरे पर इकबाल पर हुई जीत की कुस्कान खिल रही थी । मगर व्यान की ड्राइवर सीट पर इकबाल नहीं, बल्कि कोई नया आदमी नज़र आया । श्रीधर अपने शिकायत का नतीजा इतने जल्द मिलने के कारण और ज्यादा खुश हुआ । उस का मन इतिहास में हुए अन्याय का बदला अपने ढंग से लेने का गर्व करने लगा । बाजू में बैठे दिनेश पटेल से जान बूचकर पुछा कि, ''ये क्या नया ड्राइवर क्यों..?'' जैसा कि उस को कुछ पता ही नहीं है । इतने में पीछे बैठाहुआ नरेश अय्यर ने बोला ''अरे यार.. कल भी यही ड्राइवर था न.? इकबाल बता रहा था कि उस कि बेटी बीमार है । वो सिर्फ सुबह आएगा, ये नया वाला शाम को आयेगा । बेचारे इकबाल को अस्पताल में रहना पड़ रहा है । ये नया वाला बहुत घमंडी है.. किसी के लिए एक मिनट भी नही रुकता,, ''
श्रीधर से रहा नहीं गया और पुछा..'' क्या हुआ है इकबाल की बेटी को..?
'' किडनी फैल्युर हो गयी है, कल शायद उस की ट्रांसप्लांटेशन होनेवाली है,,, इकबाल अपना ही एक किडनी दे रहा है उसे । बेचारे को दो-चार लाखों का खर्चा हो रहा है । पता नही कहाँ से इंतज़ाम किया है ''' दिनेश पटेल का जवाब आया ।
श्रीधर से रहा नहीं गया और पुछा..'' क्या हुआ है इकबाल की बेटी को..?
'' किडनी फैल्युर हो गयी है, कल शायद उस की ट्रांसप्लांटेशन होनेवाली है,,, इकबाल अपना ही एक किडनी दे रहा है उसे । बेचारे को दो-चार लाखों का खर्चा हो रहा है । पता नही कहाँ से इंतज़ाम किया है ''' दिनेश पटेल का जवाब आया ।
बातों बातों में व्यान स्टार्ट हो गयी, निशा दौड़तेहुए आकर ऊपर चडी । माधवी कुलकर्णी और कुछ लोग अभी नही आये थे । निशा दरवाजे पर ही खडी होकर ड्राइवर से कह रही थी कि ..'' रुको भाई, अभी लोग आनेवाले है..''
मगर ड्राइवर अपनी अजीब सी आवाज में '' नही.. मेडम.. टाइम बोले तो टाइम.. नो वेइटिंग.." कहकर गेर बदल कर एक जर्क के साथ गाड़ी को आगे दौडाया । श्रीधर ने पूछा.. ''इस का नाम क्या है...?'' दिनेश अपने चहरे को कड़वा बनाकर कहा '' ओम प्रकाश मिश्रा'' ।