Thursday, June 6, 2013

## हे भगवान ##     


तेरे शरण में आते है लोग
पत्थर के सामने झुकते हैं लोग
क्या,,? जरूरी हैं उन का का वहाँ आना
या फिर तुम को पता नही प्रार्थना ?

तेरे नाम पे मरते मारते
डरते डराते लूटते लुटाते हैं
तुम्हे न समझते समझाते
अपना धन दौलत दिखाते हैं

देखते हैं मूर्ति के रखावालें "कितना मिला?''
सदियों का हैं ये सिल सिला
बस प्रभु बस अब तुम निकल आओ
ये सारे मठ-मंदिर ध्वस्त कर जाओ (wrote on 6th June 2007)

Tuesday, July 24, 2012

इतिहास और इकबाल

सुबह सुबह  श्रीधर को बहुत गुस्सा आया था । बिस्तर में आँखें खुलने में ही देरी हो जाने की वजह से  से गुस्सा और बढ़ रहा था। साथ ही साथ तीसरी बिटिया रात भर हुई उलटी और दस्त से बीमार पडी थीबीवी ने किचन से चिड  चिड करतेहुए आवाज़ लगाया  कि.. '' उसे अस्पताल लेजाओ..'' ।
इस ने भी तीखे आवाज़ में ही जवाब दिया  कि.. '' मै नहीं लेजाऊंगा''..
साथ में ये भी कहा  कि ''रिश्तेदारों की शादी में बेवजह जाकर ठूस ठूस के खाना खाओगे..  तो  बीमारी नही तो और क्या होगा...'' 
 ''वो तुम्हारी रिश्तेदारों कि शादी थी, मै ने बच्चों को साथ लेकर शादी में जाकर तुम्हारी  इज्जत  बचाई  है 
।  और तुम  मुझ पर ही..चिल्ला रहे हो.. ? आज के  बाद तुम्हारी तरफ के किसी भी शादी में मै नहीं जाउंगी..देख लेना'' कहर सुपर्णा ने श्रीधर को जोर से ही जवाब दिया ।
 '' कुछ भी कर लो... भाड में जाओ, डूब मरो  तुम सब''  श्रीदर भी तानेबाजी में पीछे नहीं हटा
सुपर्णा इस को नाश्ता भी नहीं देतेहुए
खुद अपनी बेटी को घसीटकर  अस्पताल ले चली गयी
उस सुबह श्रीधर  को गुस्सा आने के पीछे एक और वजह भी थी ।  वो यह कि, पिछले दिन शाम को ऑफिस से निकलने में पाँच मिनट की देरी हुयी थी । इतने में कम्पनी की व्यान का ड्राइवर ने इन्तजार नहीं करतेहुए इस के आने से पहले ही  निकल चुका था बाद में ऑटोरिक्शा नहीं मिलने से हैरान होकर, बेहाली से हाँकतहुए  घर पोहुंचने  में  रात के दस बज चुके थें   जब ये घर पोहुंचा,  तो सुपर्णा किसी की शादी से लौटकर अपनी रेशम की  साडी को अलामारे में रखते नज़र आयी थी । 
कुछ भी हो.. ऐसे छोटे छोटे चीजों पर दिमाग की दही नही बनानी  चाहिए..ऐसा सोचातेहुए श्रीधर ने अपना नहाना ख़तम कर के पूजा करने बैठा   मगर मन में ख़यालबाजी चल रही थी   ''व्यान का  ड्राइवर इकबाल को छोडूंगा नही आज, उसे वजह बतानी होगी कि, उस ने मुझे  कल ऑफिस में ही छोड़कर क्यों चलागया मै भी देखूंगा कि, क्या वो किसी के लिए भी इंतज़ार नही करेगा..? अगर किसी के वजह से एक मिनट भी रुका, तो मैं   ''ये क्या हो रहा है ? क्यों  भेदभाव कर रहे हो ..? '' कहकर उसे अपमानित करूँगा'' ऐसे मन ही मन फैसले करतहुए  ही पूजा की विधि को जल्दबाजी में ख़तम किया पूजा के बाद में भी उस का मन सिर्फ इकबाल से लड़ रहा था
बिना नाश्ता किये ही ऑफिस के लिए निकला तो, दरवाजा बंद करने के लिए चाबी नहीं मिल रही थी   जिस जगह पर उस को होनी चाहिए, वहाँ वो नही थी अनुमान लगाया कि, चाबी को सुपर्णा ले गयी होगी उसी से पूछने के लिए फ़ोन मिलाया तो, उस ने फ़ोन ही नहीं उठाया श्रीधर का गुस्सा बढ़ रहा था   अब फिर से देर हुई तो, आज भी इकबाल  व्यान लेकर निकल जाएगा । ऑफिस पोहुचने में जरूर देर हो जायेगी यहाँ से भी ऑटोरिक्शा नहीं मिलेंगे

 फिर उस ने एक दूसरे ताले से दरवाजे को बंद कर के चाबी को पड़ोस के घर में देने का फैसला करतेहुए  बहार आया तो, चाबी वही दरवाजे पर ही लटकतीहुई  नज़र आई   रात को इसी ने देरी से आकर दरवाजा खोलने के बाद चाबी को वही पर छोड़ा था  
रोड पर आकर खडा हुआ, मगर पंद्रह मिनट बीतजानेपर भी इकबाल का व्यान नही आया   फिर से गुस्से में बेचैन होते हुए, इकबाल को डाँटने के तरीकों को सोचतेहुए फुटपाथ पर मंडरानेलगा   गुस्से की वजह से एक एक पल भी एक एक घंटे की तरह लगनेलागे थे जब इकबाल व्यान लेकर आया तो, श्रीधर का गुस्सा सर चढ़कर  कांपते हुए खडा था    
                                                                              ******************
माधवी कुलकर्णी व्यान के सामनेवाली सीट पर  बैठी थी, जिस पर श्रीधर हमेशा  बैठता था    पीछे  जाकर बैठने से पहले इकबाल को दो चार गाली गलोच देने का मन बनाया, मगर उस की हिम्मत ने उस का साथ नही दिया व्यान में एफ़-एम् रेडियो  गूँज रहा था   उस शोर में ही श्रीधर जोर से चिल्लाके कुछ कहा,  मगर उस पर किसी का ध्यान नही गया सामने बैठाहुवा एक पहचान के चहरे ने आँखों से ही इशारे में  कहा कि ..''पीछे की सीट खाली  है''श्रीधर अभी भी इस बात का फैसला नहीं किएहुए खडा था कि, पीछे जाकर बैठ जाऊं.? या पहले इकबाल को डांट लूं इतने में ही ड्राइवर ने गाड़ी की  ब्रेक अचानक दबा दी । उस ब्रेक के झटके से श्रीधर माधवी कुलकर्णी के ऊपर मूह के बल गिर पड़ा  । इस का सर जाकर माधवी  के कंधे पर लगने से उस की साडी का पल्लू कस के लगायी हुई सेफ्टी पिन के साथ उखडगयी माधवी अपनी मराठी भाषा में श्रीधर की इज्ज़त  उतारने लगी इतने में  चपटी नाकवाली मानवी ने छोटे बच्चों को मनानेवाली माँ जैसी अंदाज़ में '' क्या हुवा..? अरे पीछे जाकर बैठ जाओ ना'' कहा ।  । श्रीधर ने जवाब दिया कि, ''पता है, पता है ... बैठ जाऊँगा'' ।   मानवी फिर से ''अरे.. इतनी सी बात पे भड़कते हो आप '' कहा श्रीधर को उन दोनों औरतों को जान से मारने का मन कर रहा था ।  उस को पहले कभी इतना गुस्सा नही आया था ।  उस को यह  भी पता नहीं था कि, मनानेवाली  बातों में भी इतनी अपमानित करने की ताकत होती है ।  ऐसा लगने लगा कि व्यान में सब लोग उसी को देख रहें हैं ऐसा भी ख़याल आया कि, ''मै सब के लिए मै outdated लगने लगा हूँ''
रोज कुछ न कुछ बात करनेवाला गुजराती नरेश पटेल अपने सीट में बैठकर अखबार पढ़ने में व्यस्त नज़र आया ।  अपनी मुस्कान से ही दिल बेहलानेवाली  निशा भी आज खिड़की के बहार ताकती हुई बैठी थी ऐसा लगने लगा कि इन सब के साथ मै नही हूँ । उन के लिए मेरा अस्तित्व कोई माईना नही रखता ।  इतने में श्रीधर को अचानक याद आया कि इन सब घटनाओं का वजह ये घटिया ड्राइवर ''इकबाल'' ही है । जान बूचकर ही उस ने व्यान में इतने जोर से रेडियो लगाया है ।  वही ये सब करवा रहा है, क्यों कि उस को पता है कि मै उस कोआज डाँटने वाला हूँ । श्रीधर  को समझ में आगया कि माधवी को जान बूचकर  इकबाल ने ही सामनेवाली सीट पर बिठाया है । 
ऑफिस पोंहुचने तक  श्रीधर के सीने में जलन शुरू हो चुकी थी ।  सोचा कि, सुबह की नाश्ता नही करने के वजह से आसिडिटी से शुरू हुई होगी ।  जल्द ही कैंटीन जाने का फैसला कर के  अपने वर्कस्टेशन पर बैठकर कंप्यूटर को चालु करते ही इ-मेल से तुरंत मीटिंग रूम में आने की सूचना मिली ।  कान्फरेन्स हाँल में इस के जाने से पहले ही सब लोग  हाजिर थे ।  अमेरिका के ऊपरी दफ्तर से उन की कम्पनी के दिवाला निकलने की आशंका के साथ साथ कुछ कर्मचारियों को घर भेजने की सूचना भी मिली थी   बॉस बता रहा था कि, बंगलोर की इस शाखा में भी पहले चरण में दो सौ लोगों को पिंक स्लिप देकर घर भेजदिया जाएगा    मीटिंग से वापस आते ही कैंटीन  जाकर वहा दो इडली और साम्बार खाने की कोशिश किया   उसे खाते ही सर में दर्द शुरू  होगई, बेचैनी सी लगने लगा और  जो कुछ खाया था, सब उलटी हो गयी । वमन  के बाद एक के बाद एक सिगरेट फूँक कर वापस आया    कंप्यूटर पर  बैठकर देखा तो, उस की  अमेरिकावाले बेटे की  इ-मेल इंतज़ार कर रही थी  इ-मेल से पता चला कि बेटे की  अमेरिकावाली नौकरी चल बसी है    घर को फ़ोन कर  बीवी को इस बात को बताने का भी मन नहीं हुवा 
                                                             *****************
दोपहर के खाने के बाद विराम में श्रीधर अपने पर्सनल  इनबाक्स में पड़े अनचाहे इ-मेलों को डिलीट कर रहा था । उन के बीच एक पुरानी फारवर्ड किया हुवा मेल पर नज़र रुकी । उस में एक लेख के साथ ताजमहल के और कुछ मंदिरों के फोटो भी जोड़ेहुए थे  । उस लेख में लिखा गया था कि, किस तरह एक हिन्दू राजा की  अपनी खुद के निवास के लिए बंधवाई हुई महल को शाहजहान ने अपने कब्जे में लिया और उस को मुमताज़ बेगम की समाधि के रूप में तब्दील किया । उस बात की पुष्टि के लिए कुछ चारित्रिक आधार और ताजमहल की वास्तु की अलग अलग तस्वीर और साथ में कुछ मंदिरों के भी तस्वीर और विवरण थें,  जिन जिन मंदिरों को मुसलमान राजाओं ने मस्जिद के रूप में बदल डाला । लेख के अंत में कुछ वेबसाइट्स के लिंक मौजूद थे, जिन में इस बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध थी । कई सारे इतिहास के पुस्तकों का नामों का उल्लेख था जिन में मुसलामानों से भारत पर  हुई अत्याचारों  का ब्यौरा लिखा हुआ है । ये सब पढने के बाद श्रीधर को व्यान का ड्राइवर इकबाल इन सब मुसलामानों की प्रतिनिधी के रूप में नज़र आने लगा । ''आज शाम को मिलने दो..सही सबक सिखाऊंगा उसे'' ऐसा सोचातेहुए अपने काम में लग गया । मगर दिमाग में सिर्फ इकबाल का चेहरा सता रहा था । कई बार ऐसे धुन्दले चित्र आँखों के  सामने आने लगे, जिन में इकबाल और उस के साथी एक हिन्दू मंदिर को तोड़ रहे थे 
घर जाने का वक्त  होने में कुछ देर बाक़ी था ।  इतने में श्रीधर सोच रहा था कि, अपने विभाग से किस किस को नौकरी से हटाकर घर का रास्ता दिखाया जाए । अचानक मन में आई एक ख़याल से उस का मन खिला उठा । अगर दो सौ लोगों को नौकरी से निकालना है तो, उन के साथ में कम से कम बीस व्यान ड्राइवरों को भी अपने नौकरी से हाथ दोना पड़ेगा । उन बीस लोगों की सूची में इस हराम इकबाल का नाम जरूर अना चाहिए । यही सही वक्त  है इस को सबक सिखाने का । मै इस मौके को नहीं छोडूंगा  इस वक्त शिकायत किया तो, तुरंत निकाल फेकेंगे उस को । ऐसे ख़याल आते ही श्रीधर उत्साहित होकर सट के बैठा और इ-मेल में इकबाल पर शिकायत लिखकर भेज डाला   शिकायत भेजने के बाद ही उस के मन को थोड़ी सी चैन मिली   
                                               *****************************
शाम को व्यान में चढ़ते हुए श्रीधर के चहरे पर इकबाल पर हुई जीत की कुस्कान खिल रही थी मगर व्यान की  ड्राइवर सीट पर इकबाल नहीं, बल्कि कोई नया आदमी नज़र आया   श्रीधर अपने शिकायत का नतीजा इतने जल्द मिलने के कारण और ज्यादा खुश हुआ । उस का मन  इतिहास में  हुए अन्याय का बदला अपने ढंग से लेने का गर्व करने लगा   बाजू में बैठे दिनेश पटेल से जान बूचकर पुछा कि, ''ये क्या नया ड्राइवर क्यों..?'' जैसा कि उस को कुछ पता ही नहीं है   इतने में पीछे बैठाहुआ नरेश अय्यर ने बोला ''अरे यार.. कल भी यही ड्राइवर था न.? इकबाल बता रहा था कि उस कि बेटी बीमार है । वो सिर्फ सुबह आएगा,  ये नया वाला शाम को आयेगा । बेचारे इकबाल को अस्पताल में रहना पड़ रहा है ये नया वाला बहुत घमंडी है.. किसी के लिए एक मिनट भी नही रुकता,,  '' 
श्रीधर से रहा नहीं गया और पुछा..'' क्या हुआ है इकबाल की बेटी को..?
'' किडनी फैल्युर हो गयी है, कल शायद उस की ट्रांसप्लांटेशन होनेवाली है,,, इकबाल अपना ही एक किडनी दे रहा है उसे
बेचारे को दो-चार लाखों का खर्चा हो रहा है   पता नही कहाँ  से इंतज़ाम किया है ''' दिनेश पटेल का जवाब आया  


बातों बातों में व्यान स्टार्ट हो गयी, निशा दौड़तेहुए आकर ऊपर चडी 
  माधवी कुलकर्णी और कुछ लोग अभी नही आये थे निशा दरवाजे पर ही खडी  होकर ड्राइवर से कह रही थी  कि ..'' रुको भाई, अभी लोग  आनेवाले है..''
मगर ड्राइवर अपनी अजीब सी आवाज में '' नही.. मेडम.. टाइम बोले तो टाइम.. नो वेइटिंग.."  कहकर गेर बदल कर
एक जर्क के साथ गाड़ी को आगे दौडाया     श्रीधर ने पूछा.. ''इस का नाम क्या है...?'' दिनेश अपने चहरे को कड़वा बनाकर कहा '' ओम प्रकाश मिश्रा''  

Monday, July 23, 2012

पीढी अंतराल

मेरी प्यारी जिद्दी रानी !
अभी तक मुझ  से रूठी हो..? जब भी तुम रूठ्जाती हो तो मुझे थोडा मजा आता है  मगर साथ ही में डर भी लगा रहता है कि, तुम को कहीं  खों ना दूँ  हमारे बीच  जब किसी बात पर बहस उठ खडी होती है तो,  तुम मेरी किसी भी  बात को समझती  ही नहीं हो क्यों की तुम हमेशा अपने नाक के बराबर ही सोचती हो । और कहती हो कि, मै तुम्हे समझ ने की कोशिष नहीं करता हदर असल बात यह है कि, मै तुम्हे समझता  हूँ मगर तुम मुझे  समझने की  कोशिश नहीं करती हो  तुम सिर्फ चाहती हो कि, हर कोई तुम्हारी बात माने अपने बात को मनवाने की  क्रिया को ही तुम understanding  कहती हो मगर वास्तव में वह समझना नहीं, मजबूर होना होता है  इसी को wave length का match ना होना कहते है एक रिश्ते में अपने साथी इनसान के बात को समझने  के लिए  बौद्धिक विकास होना जरूरी होता है. मगर उस की  कमी ही सारी समस्याओं का जड़ है।  यह बात बाप- बेटे माँ- बेटी जैसे सभी रिश्तों पर लागू  होती है दो व्यक्तियों में किसी एक की  बात को दूसरा व्यक्ति समझ नहीं पाया तो, उसी को आज-कल जेनरेशन गैप कहते है  कोई भी रिश्ता अरोग्यपूर्ण होना हो तो, wave length  का सामान होना जरूरी है ।  या फिर, सामने की  व्यक्ति के ''नासमझी'' को समझने की  maturity  दोनों में से किसी एक को  होना चाहिए, जिस से कड़वाहट ज्यादा नहीं होती है ये maturity क्या है ? इस का विकास कैसे होता है ..? इन  सब बातों को फिर कभी बताऊंगा मगर आज तुम को थोडा ये जेनरेशन गैप के बारे में बताता हूँ 

  भगवान ने हर इंसान को अलग अलग बनाया ही, साथ में बुद्धि को भी अलग अलग बना डाला मगर इंसान के स्वभाव और सोच का निर्माण उस के खान पान, माता पिता और उस के माहौल ये सब मिलकर बना लेते है  और वह स्वभाव निरंतर बदलते रहता है और बदलना भी चाहिए change is the law of world. और वह बदलाव व्यक्तित्व और व्यवहार में भी होना चाहिए जो व्यक्ति  समय के साथ अपने बौद्धिक  सामर्थ्य को नहीं बढाता  है, उसे दुनिया के सारी चीजों में समस्याएं नज़र आने लगती है  इसीलिए किसी दार्शनिक ने कहा है कि man has to change his opinions, but  donkeys need not. 


 पुराने जमाने में ज्ञान प्राप्त करने का एक मात्र स्रोत माता पिता या बुजुर्ग हुआ करते थे एक बच्चा अपने पिता के धंदे को बचपन से देखते देखते सीख लेता था उसे कहीं जाने कि जरूरत नहीं थी क्यों  कि, स्वयं उस के पिता उस धंदे में पारंगत या Expert होता था इस तरह उन कि पुश्तैनी पेशा उन के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित या transfer हुवा करती थी। बेटे को उस के पिता के देखरेख में हर काम को सीखना पड़ता था  इस तरह अनुभव के आधार पर पिता  अपने बच्चे से हमेशा आगे होता था. यह सिद्धांत करीब करीब सभी रोजगार के तरीकों पर लागू था पुराने जमाने में आज की तरह हर कसबे, हर गॉव या हर शहर में  स्कूल, कोलेगे या विश्वविद्यालय नहीं थे कुछ ही बड़े घरानों के बच्चों के लिए गुरुकुल या मदरसा हुआ करते थे इस प्रकार कि शिक्षा कि सुविधा आम जनता को उपलब्ध नहीं थीं यहीं कारण था कि हर पिता अपने बच्चे के लिए केवल पिता नहीं बल्कि, गुरु भी होता था हर पिता या गाँव के बड़े बूढ़े अपने धंदे में निष्णात थे उस बच्चे को ज्ञान का कोई दूसरा स्रोत नहीं होने के वजह से हर बच्चा हमेशा अपने बड़े बूढों से कम जानता था इस से स्वाभाविक रूप से बच्चे के मन में बड़ों के प्रति आदर और श्रद्धा का भाव बसता  था   किसी को यह बताने के जरूरत नहीं थी कि, माता-पिता का आदर करना चाहिए  बड़े बूढों का सम्मान करना चाहिए बच्चों को उन कि आज्ञा  को माननी पड़ती थी, क्यों कि वे हर बात में उन से श्रेष्ठ थे उन के पास श्रेष्ठ ज्ञान उपलब्ध था  यदि उन से कुछ सीखना है तो,  उन का आदर करना पड़ेगा मगर आज पिछले दो सौ सालों से ज्ञान हर किसी को उपलब्ध बन गया, और २१वी सदी  में तो ज्ञान का विस्फोट ही हो गया है 


किसी भी धंदे पर किसी एक जात के लोगों के बकौती नहीं रहगयी है कोई भी कुछ भी काम करने लगा है और कोई भी बात किसी से भी सीखी जा सकती है विज्ञान ने आज सारे विश्व को एक परिवार बना दिया है विज्ञान ने मनुष्य के हर आयाम को प्रभावित किया है आज एक पिता अपने बच्चों को ऊंची शिक्षा के लिए भेजता है और उस शिक्षा के लिए आर्थिक इंतज़ाम भी पिता ही करता है, जो पुराने जमाने में नहीं होता था । बच्चा विद्यालयों  में शिक्षा प्राप्त करता है उस के पास ज्ञान प्राप्त करने के बहुत सारे साधन और समय होता है, जब कि पिता अपने नौकरी में या रोजगार में लगा रहता है जिस के कारण उस का ज्ञान विस्तृत नहीं हो पाता  है मगर उस के बच्चा अपने पिता के नौकरी से हटकर अलग दुनिया का खूब सारा ज्ञान प्राप्त करचुका होता है वह सिर्फ अब उन का बच्चा नहीं है वह एक स्वछंद माहौल में जीकर आया है.। उस के अलग सपने है वह अब किसी एक विषय में पारंगत होकर आया है मगर पिता के पास तोह वही पुराना ज्ञान है जो अपने स्कूल और काँलेज के दिनों में अर्जित किया था।  मगर वह out of date हो गया है
इस के साथ साथ टीवि, इन्टरनेट जैसे कई माध्यमों से नयी पीढी अपना जनान को बढाती जाती है, जब की बड़े बुजुर्ग  इन सब चीसों को बुरी आदत मानतल  है  इस तरह से दोनों के बीच का खड्डा गहरा होते जाता है  आखिर में यही जेनरेशन गैप के रूप में खडा होकर एक दूसरे को अलग कर देती है  मई ने कई बड़े बड़े विद्वानों को, कवी तथा लेखकों को करीब से देखा है, जो बहार की दुनिया में मंच पर खड़े होकर हजारों  श्रोताओं को अपनी वाणी से, अपना ज्ञान से मंत्रमुग्ध करदेते है  मगर जब ये बुद्धिजीवी अपना घर जाते है तो, घर में उन को पूछनेवाला नही होता है  घर में  उन  का का कोई इज्जत नही होता है   उन के परिवार में  उन की बातों को, और उन की महानता को समझनेवाले ही नही होते है  क्यों की वे अपने घर के सारे सदस्यों के साथ लेकर आगे बढ़ने के बजाय, अपनी विचारों को, तरक्की को समय समय पर उन के साथ बाँटने के बजाय, वे अकेले ज्ञान कमाते चाले जा चुके होते है  वे अपने रास्ते में अकेले हो चुके होते है। इसी लिए उन के बातों को समझने की क्षमता जिन बहारी लोगों में होती हैं, उन लोगों में इन की इज्जत होती है   अपने घर में  नही  जेनरेशन गैप सर पीढ़ियों के बीच नही होती है   पति पत्नी के बीच में भी हो जाती है  क्यों की जैसे मई ने बुद्धिजीवियों का उदाहरण दिया, उसी तरह पति अपने काम काज में व्यस्त रहकर अपना एक अलग दुनिया बना लेता है और पतनी  अपनी अलग  इस तरह पति पत्नी के दो अलग अलग दुनिया बन जाने पर भी वे दोनों एक साथ इसलिए रहपाते है, क्यों की भारत की शादी और सामाजिक व्यवस्था के नियम और बच्चो की जिम्मेदारी, आर्थिकता जैसी  कई सारे तथ्य उन को एक साथ बाँध के रखते है

Thursday, April 26, 2012




हे सखा


चुभती काँटों से भरी ये राह
तुम से ही मिलने की है चाह 
हे सखा .मिलने आई तुजे..
जरा मुड के तो देखो 
तो,  तुम भी कहोगे....वाह..! 


(this was my comment when i saw a photo of one of my FB friend  walking on railway track. but unable to upload her original pick here) 

Thursday, August 25, 2011

आराम कर

इष्क मांगे कदम कदम कुर्बानियां
कुछ देर को कुछ लज्जतें कुर्बान कर
 
एक काम कर, हो सकें तो काम कर
 
राह में उस कि अगर हैं मुश्किलें
तो तेज चल.........जाके वहीं आराम कर

Saturday, July 24, 2010

कल के सूरज


बिना चाँद की रात में
चमकती उस की मुस्कान है
सपने बुनती बैठी उस के गोद में
बच्चे का खिलता बचपन है

कहानी सुनाकर लोरी गा रही है
बच्चा तो बहाना है, खुद को सुनाती लोरी है
पेड़ों के झुण्ड से उठी ठंडी हवा
झोकें से बदन को छुआ है
पलकों में जमी नींद भी


झोंकें के संग चल बसी है
"माँ" कहतेहुए बच्चा दूध भरे सीने के और बढ़ा 
हैअपने नुर्म स्पर्श से नाभि के गहराई में
 चाहत कि चिंगारी भड़काया है
मगर उसे बुझानेवाले ने भटक भटक के घर को भूला है


जीवन के अँधेरी झोपड़ी मेंरोशनी घुसने के लिए छल्ले भी नहीं है
फिर भी वह औरत जीती है, रोशनी के इंतज़ार में
सीना चूसकर सपने जगानेवाले बच्चे के लिए
रोशनी लानेवाले "कल के सूरज" के उदय के लिए

Thursday, June 10, 2010

मेरे संग

कोई न कोई फूल खिलेगा
मेरे जैसा कौन मिलेगा

हँसी उडाती रहेगी ये दुनिया
किस के आँसूं कौन पियेगा

हर कदम पर कदम है मेरे
सिवा मेरे, साथ कौन चलेगा

जान बचाने की पड़ी है सब को
मरनेवाले के साथ
भला कौन मरेगा

Wednesday, March 24, 2010


स्थिति

फिर वही रासतें
फिर वही राह गुज़र 


जाने हो या ना हो
मेरा घर वो नगर


ये कहानी नहीं
जो
सुनादूँगा मै 


जिंदगानी नहीं
जो
गवाँ दूंगा मै

छाव
भी धूप की तरह गुज़री मेरी 
अब जो दीवार आए , गिरादूंगा  मैं 

तेरा आँचल रहा
आसमाँ की तरह



सारे मौसम गए
फिजा की तरह


साये की तरह 

सब दूर होते गए 


सिर्फ खुशबू रही 
दिल की घाव की तरह

Sunday, December 20, 2009





प्राप्ति

सुख को पाते है लोग
धन दौलत में
इज्जत और शोहरत में,
कुछ ही लोग
प्यार और स्नेह में
मगर एकाध कोई
फूलों के मुस्कराहट में
माँ की पुरानी
साडी की नरमी में
गरीब भिकारी के गाने के आलाप में

Friday, December 18, 2009




एक बार


तेरी गोद में सर रखकर रोने दो
मेरी दर्द की दरिया को बहने दो
ऐ सहेली...जीने के दिन हैं ही दो
तुम एक बार फिर मुस्कुरा दो
बिनती

बरसों मेघा बरसों
जोर जोर से बरसों
मगर इतना जोर से नहीं कि,
मेरी नजूक सखी
बारिश में भीग न पाए
बूंदों से खेल न पाए

फोटोग्राफर

लोगों के खुशियों को 
रंग-रंगीन तसवीर बनाकर
उन के मीठे मीठे यादों को जोड़ कर
उन्हें देता है 
फिर से याद करने के लिए.... 

और अपने लिए बचा लेता है
उन यादों के बेरंग नेगेटिव्स

और अनजान
भीड़ वाला अकेलापन

Tuesday, November 17, 2009





ಪರಿಹಾರ

ಮನವು ಮಗುಚಿ ಬಿದ್ದು ಮಗುವಿನಂತೆ
ಹಠ ಮಾಡಿ ಅತ್ತು ಕರೆದಾಗ
ಮುದ್ದಿಸಿ ಸಂತೈಸುವ
ತಾಯಿಯೇ ಏಕಾಂತ...

Friday, November 13, 2009

ದುಃಖ
 


ನಾನು ಬರೆದ ಕವಿತೆಗಳು
ನನ್ನೊಂದಿಗೆ
ಕದನಕ್ಕಿಳಿಯುತ್ತವೆ
ಕನಲಿ
ಕಣ್ಣೀರಾಗುತ್ತವೆ
ನಾನು
ಅವುಗಳಲ್ಲಿ ತುಂಬುವ
ದುಃಖವನ್ನು
ಹೊತ್ತುಕೊಂಡು
ಕಾಗದದ
ಮೇಲೆ ನಿಲ್ಲಲಾಗುವುದಿಲ್ಲವೆಂದು.